सांड की आँख

सांड की आँख मुवी की कहानी है दो ऐसे वास्तविक किरदार के ऊपर है जिन्होंने इतिहास रच दिया और हर एक ऐसी धारणा को तोड़ दिया जिसमें ये माना जाता था कि अनपढ़ और 60 से भी ऊपर की उम्र में वो औरतें क्या कर लेंगी जो कभी अपने गाँव के बाहर कदम भी ना रखा हो |
कहानी है ये दो ऐसी तोमर दादीयों की शुटर दादीयों की जिन्होंने अपने परिवार की लड़कियों को हिम्मत, हौसला, खुद के पैरों पर खड़े होने के लिए, आगे बढ़ने के लिए, उनकी प्रेरणा के लिए खुद को पहले मजबूत और सशक्त बनाया ताकि उनके घर की बेटियाँ उनकी ही तरह बस ब्याह कर चौके – चुल्हे में ही ना उलझ जाए, जो उन्होंने अपनी जिंदगी में में ना देखा, ना किया, जो खुशी उन्हें कभी ना नसीब हुई, वो सब उनकी घर की बेटी, बहू और गाँव कि बाकी लड़कियों को मिले जो जिंदगी में कुछ करना चाहती हो |
मैं इस कहानी से बहुत ही प्रभावित हुई हूँ, इसने मेरे अंदर एक जान डाल दी |
भारत में कई ऐसे राज्य हैं, जहाँ आज भी औरतों की स्थिति दयनीय है, लंबी – लंबी घूँघट, सारा दिन बस खेत में काम करना, पुरुषों के बराबर बैठने का भी दर्जा नहीं होता इनके पास बस खेत, गाय, गोबर, खाना और बच्चे पर बच्चे यही होती हैं इनकी जिंदगी |
ये कहना बिल्कुल ही गलत होगा की मर्द हम औरतों के साथ भेदभाव करते हैं, हम खुद के सोच के कारण ही इस तरह के भेदभाव को बढ़ावा देते हैं, हमारी खुद की गलती है कि हम अपने सम्मान के लिए खड़े नहीं होते, क्या भगवान या संविधान के किस कानून में ये लिखा गया है कि औरतों को मर्द के सामने उनके बराबर बैठना नहीं है या फिर औरत को जिंदगी भर घूँघट में मुँह ढककर रखना हैं |
कई ऐसे भी जगह है जहाँ अगर बहू के मुँह से घूँघट भी सरक जाए तो उनकी इज्जत पर आँच आ जाती हैं लेकिन वही बहू या बेटी घर में शौचालय ना होने के कारण बाहर खेतों में जाकर बैठे तो इनकी पगड़ी नही झुकती हैं |
अजीब सी इज्जत है मेरे समझ में तो आज तक नहीं आई ये बात |
कौन कहता हैं कि एक औरत को आगे बढ़ने के लिए पति की साथ की जरूरत पड़ती है, अगर पति के आँखों पर अज्ञानता की पटटी बँधी है तो बँधे रहने दे वो करिए जो सही है |
ये दो शुटर दादी चदरू तोमर जी और प्रकाशी तोमर जी उन परिस्थितियों में भी हिम्मत के साथ अपने सपने के लिए आने वाली पीढी की हर बेटी – बहू के लिए बिना किसी का साथ लिए वो किया जो कोई सोच भी नहीं सकता था |
घूँघट लिए हाथ गोबर से सने थे इनके गाँव के बाहर की दुनिया को देखा भी नहीं था फिर भी इन दो शुटर दादीयों ने हाथ में बंदूक लिए धारणा गत्ते पर निशाना बनाके सभी को क्लीन बोल्ड कर दिया |
अगर हर घर में एक शुटर दादी हो तो हम औरतों की जिंदगी भी आसान हो जाएगी, पहले तो हमें अपने अंदर से ये सोच ही निकाल देनी चाहिए कि जो हमने नहीं किया वो हमारी बहू और बेटी क्यों करेंगी, इस एक सोच को खत्म करने पर आधी समस्या तो यहीं हल हो जाएगी और जो आधी बची वो आपके हर बढ़ते हुए कदम के साथ – साथ खत्म होती जाएगी |
अपनी समस्याओं को गोली मारकर उड़ा दो, ईश्वर ने सबसे बड़ी जिम्मेदारी हम औरतों को ही दी है, औरत सृष्टि की रचयिता है |

Thanku so much 💜

#Divya’s Dairy

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